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Pakistan Athwa Bharat Ka Vibhajan

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पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’
बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर का एक अभिनव ग्रंथ है, जिसके माध्यम से जहां मुसलमानों की अवधारणा ‘पाकिस्तान’ के विभिन्न पक्षों का अद्योपान्त अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। वहां तत्कालीन भारतीय राजनीति के प्रस्फुटित आयामों की निष्पक्ष बुद्धिवादी समीक्षा प्रस्तुत की गयी है। यही कारण है यह कृति दोनों पक्ष व विषय के लिए एक सार्थक दस्तावेज सिद्ध हुई है। लेखकों, राजनीतिज्ञों और समाचार पत्रों के सम्पादकों ने अपनी-अपनी दृष्टि से प्रस्तुतिकरण करके इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। कृति का मूल्य उस समय और अधिक बढ़ जाता है जब पक्ष-विपक्ष स्वरूपचन्द्र बौद्ध के दोनों शीर्ष नेताओं मिस्टर जिन्ना और माननीय गांधी ने अपनी तत्कालीन द्विपक्षीय वार्ता में इस पुस्तक को मानदण्ड मानकर अपने-अपने पक्षों को एक-दूसरे के समक्ष उल्लेख किया है।

इस अभिनव ग्रंथ को लिखने की आवश्यकता पुस्तक के ‘आमुख’ में उल्लेखित की गयी है, जिसके अनुसार मुस्लिम लीग के दिनांक 26 मार्च, 1940 के लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान पर एक प्रस्ताव पारित करने के तुरंत बाद भारतीय राजनीति में एक भूकम्प- सा आ गया। दूसरे पक्षों के अतिरिक्त उस समय की अवस्थित दलित राजनीतिक पार्टी ‘इण्डियन पार्टी’ (आई.एल.पी.) की कार्यकारिणी भी इस पर गहन विचार-विमर्श करने पर हुई। सम्भवतः उनके अनुसार इससे दलित पक्ष की महत्ता को तब ठीक से महसूस किया जाएगा। यदि दलित उत्कर्ष को उस समय दोनों कांग्रेस और मुस्लिम लीग के तत्कालीन नेताओं ने एक पृथक पक्ष के रूप में अंगीकार किया होता तो स्वाभाविक रूप से देश का विभाजन नहीं होता परन्तु विडम्बना है कि दोनों पक्षों के दम्भ के कारण इस तथ्य की घोर उपेक्षा की गई और आई.एल.पी. के अध्यक्ष डॉ. आंबेडकर का यह प्रतिवेदन चर्चा का विषय तो बना परन्तु माननीय गांधी जी की तुष्टिकरण की नीति और राजनीतिक अपरिपक्वता के कारण कांग्रेस अंग्रेजों की कूटनीति के नेपथ्य में मुसलमानों के समक्ष हथियार डालते नजर आई। शायद 1992 के पूना पैक्ट के समय गांधी द्वारा आमरण की धमकी की छाया में घटित घटनाएं उनके मन-मस्तिष्क को कुठित कर रही थीं। यही कारण था कि सदियों से प्रताड़ित एक विशाल जनसमूह की भावनाओं का वे मानवीय आधार पर आंकलन नहीं कर सके।

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