देश विभाजन का खुनी इतिहास
(लेखक, पुस्तक एवं विषय परिचय)
गोपाल दास खोसला, बी.ए. ऑनर्स, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने इण्डियन सिविल सर्विस (आई.सी.एस.) के न्यायिक प्रभाग में अपनी सेवा प्रदान की और पंजाब उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद से सेवा निवृत्त हुए। वे अनेक लघु कथाओं, उपन्यासों, ऐतिहासिक उपन्यासों, संस्मरणों, याश वृत्तान्तों, राजकीय अनुसंधान प्रतिवेदनों और आत्मया के लेखक हैं।
उच्च न्यायालय में ‘गांधी मर्डर केस की सुनवाई पीठ में न्यायाधीश के रूप में भागीदारी से आपकी देश भर में प्रसिद्धि हुई। अपनी पुस्तक “स्टर्न रियलिटी” में आप ने ‘गांधी मर्डर केस’ की सुनवाई का विवरण देते हुए एक महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की है, “खचाखच भरे न्यायालय में नाथूराम गोड्से के बयान के बाद उपस्थित जनसमूह से यदि निर्णय देने को कहा जाता तो वे बहुमत से गोड्से को दोषमुक्त होने का निर्णय देते।” इससे गाँधाजी के प्रति उस समय जनसमूह में असंतोष और रोष की झलक मिलती है।
यह पुस्तक 1949 में पहली बार प्रकाशित हुई थी। विभाजन के समय दंगों, कत्लेआम हताहतों की संख्या और राजनीतिक घटनाओं को यह दस्तावेजी स्वरूप प्रदान करती है, जिनके कारण भारत का दो भागों, भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन हुआ। इसके प्रकाशन से लेकर आज तक के साठ वर्षों में यह इतिहासकारों के लिए आधार ग्रंथ बन चुकी है। 1946-47 की घटनाओं के प्रामाणिक लेखन और राजनीतिक- ऐतिहासिक परिदृश्य धारण करने में इसका मूल्य निहित है, जो उस अवधि में घटित घटनाओं का प्रतिनिधित्व करती है, जब यह पुस्तक लिखी जा रही थी। यह निजी अवलोकन और तथ्यान्वेषी संगठन के प्रतिवेदनों के आधार पर, जिसने हजारों शरणार्थियों के दिल दहलाने वाली घटनाओं को लिपिबद्ध किया था, से सीधी प्राप्त सूचनाओं पर आधारित है। इसमें घटित घटनाओं के वृत्तांत हैं। यह घटनाओं में लोगों के पूर्वाग्रह या अभिरुचि जनित पक्षपात के प्रामाणिक आलेख के रूप में बहुत रोचक है, जो स्वतंत्रता या विभाजन बहुत बाद के विद्वानों के आलेखों में दृष्टिगोचर नहीं होता।
प्रस्तुत पुस्तक जी. डी. खोसला की अंग्रेजी पुस्तक “स्टर्न रेकनिंग” की हिन्दी में अनुवाद सहित समीक्षा है। यह पुस्तक देश विभाजन के पहले और उसके बाद देश के अनेक हिस्सों में होने वाले उथल-पुथल, जिसमें लाखों लोगों की क्रूर हत्याएँ, उनकी सम्पत्ति की लूट, महिलाओं का अपहरण और बलात्कार, बड़े पैमाने पर बलात् धर्मान्तरण और करोड़ों लोगों को अपने घर और सम्पत्ति का परित्याग कर इधर से उधर अनजान जगहों में आने-जाने को विवश होना पड़ा था, का संग्रह है, जिसे लेखक ने भविष्य के इतिहास के विद्यार्थियों के लिए तैयार किया है। इसकी समीक्षा की आवश्यकता इस लिए महसूस की गई, क्योंकि लेखक की अनेक टिप्पणियाँ सही कारण आधारित प्रतीत नहीं होतीं।
इतने बड़े नृशंस, जघन्य, अमानुषिक और बर्बर अपराधों के पीछे का कारण क्या आर्थिक-राजनीतिक लाभ और तात्कालिक भावावेग मात्र था या यह किसी सुनियोजित योजना का कार्यान्वयन था। इन घटनाओं को उत्पन्न करने वाले कौन से कारण थे? इन कारणों की स्पष्ट समझ होना अतिआवश्यक है; क्योंकि उनके ही आधार पर भविष्य की पीड़ियों को वैसी विपदा से ऋण दिलाने हेतु समुचित मार्गों की खोज की जा सकती है।
पीड़ित समुदायों की आत्मनिष्ठ जीवनधारा और सामाजिक ताना-बाना के अभाव के कारण इस अति गम्भीर समस्या पर विधिवत विचार-विमर्श की प्रक्रिया की शुरुआत नहीं हो सकी। किसी समस्या के समाधान की दिशा में बढ़ने का प्रथम प्रयास उस समस्या को अच्छी तरह समझना होता है। बिना जाने-समझे किसी समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। चूँकि समस्या विकट है, इसलिए उससे मुँह फेर कर बैठ रहना तो उसे और भी विकट बनाना है। समस्या कितनी भी जटिल हो, उसका सामना कर ही समाधान खोजा जाता है। यह पीड़ित समुदायों के हर वर्ग के व्यक्तियों का कर्तव्य है कि इस अति भयानक समस्या पर ध्यान देकर सामूहिक रूप से उसके समाधान की तलाश करें, अन्यथा उनकी उदासीनता भविष्य की अपनी ही पीढ़ियों के विनाश के लिए जिम्मेदार होगी। उनकी हीनता के कारण समय, उनको अपने ही बच्चों के संहार के लिए अपराधी सिद्ध करेगा। यह समीक्षा उसी दिशा में एक लघु प्रयास है।
चूंकि यह पुस्तक एक ही प्रकार की क्रूर एवं खूनी घटनाओं का संग्रह है, इसलिए उबाऊ भी है। मात्र हास्य-विनोद में रुचि रखने वाले थोड़े पाठकों के लिए यह ललित निब नहीं हैं, वरन पूर्व पीड़ित समुदायों के सौ प्रतिशत लोगों के जीवन, सम्पत्ति, महिलाओं की प्रतिष्ठा, स्वाभिमान और सम्पूर्ण सांस्कृतिक मूल्यों के अस्तित्व के दाँव पर होने की भयंकर समस्या से संबंधित है। इसलिए ध्यानपूर्वक चिन्तन करते हुए धीरे-धीरे पूरी पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहिए, और प्रत्येक जिम्मेवार व्यक्ति को पढ़ना चाहिए; जिससे समस्या के समाधान की दिशा में ध्यान मुड़े।
समीक्षात्मक टिप्पणियों का वास्तविक उद्देश्य सत्य का उद्घाटन है, किसी की भावना को आहत करना नहीं। मनुष्य अपनी विशिष्ट प्रकृति के कारण ही अन्धविश्वासों और पाखण्डों का शिकार बनता है, जो विध्वंस और विनाश के स्रोत हैं। वह उनका अभ्यस्त बन कर और स्वहितों से तालमेल बिठाकर असत्य धारणाओं के साथ जीने लगता है। सत्य से आहत होता है और प्रतिक्रिया स्वरूप आघात करता है। किन्तु मानव कल्याण हेतु सत्य का अनुसरण ही सर्वोत्तम मार्ग है, जो औचित्य और न्याय की बोध दृष्टि प्रदान करता है।
मनुष्य के कल्याण और सर्वोन्नति का यही एकमात्र मार्ग है। इसलिए विवेक जागृत करना, अंधविश्वासों और पाखण्डों की पहचान कर उनका त्याग करना, सत्य का अनुसंधान करना और सत्य मार्ग का अनुसरण करना ही मनुष्य का उचित और वास्तविक कर्तव्य है।
कम लागत में अधिकतर लोगों तक शीघ्रता से पहुँचाने के उद्देश्य से आरम्भ में पुस्तक को तीन खण्डों में बनाने का विचार था, इसलिए तीनों खण्डों को अपने आप में सामान्य जानकारी योग्य बनाने में समीक्षा में पुनरोक्ति दोष आया है। पाठक को इसे इसी रूप में लेना चाहिए।
अन्त में मेरे प्रेरणा स्रोत, परम श्रद्धेय डॉ. कृष्ण वल्लभ पालीवाल जी, अध्यक्ष, हिन्दू राइटर्स फोरम, नई दिल्ली के स्नेह का स्मरण और कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ, जिनसे सतत ऊर्जा पाकर इस कार्य को पूरा कर सका।
पुस्तक की तैयारी के विभिन्न चरणों में विभिन्न प्रकार के निरन्तर सहयोग के लिए मैं सर्वश्री किशोर कुमार, रवि कुमार, प्रिंस, सिद्धान्त कुमार और उनके मित्रों को धन्यवाद अर्पित करता हूँ।
श्री महेन्द्र कुमार गुप्ता के इस कार्य और विषय में विशेष रुचि के साथ शब्द संयोजन के उनके सहर्ष अथक प्रयास की सराहना के साथ आभार व्यक्त करता हूँ।
शब्द संयोजन या अन्य किसी त्रुटि के लिए पाठकों द्वारा दिए गए सुझाव के लिए मैं कृतज्ञ रहूँगा ।
-सच्चिदानन्द चतुर्वेदी
Reviews
Clear filtersThere are no reviews yet.