एकात्म मानव दर्शन
श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (श्री गुरुजी) और पंडित दीनदयाल उपाध्याय प्राचीन मनीषा के दो आधुनिक व्याख्याकार हैं, जिन्होंने भारतीय समाज को स्वाभाविक रूप में प्रकट होने वाले विभिन्न अन्तर्विरोधों पर विजय पाने की योग्यता प्रदान की। अपने वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिक विकास के उपरान्त पाश्चात्य जगत् अब भी व्यक्ति-स्वातन्त्र्य और सामाजिक अनुशासन, राष्ट्रवाद और अन्तरराष्ट्रीयता अथवा भौतिक प्रगति और आध्यात्मिक उन्नति में सामंजस्य करने में सफल नहीं हो सका है । खण्ड-खण्ड में विचार करने की अपनी पद्धति के कारण वह भासमान विविधता में अन्तर्निहित एकता का प्रेक्षण, दर्शन एवं साक्षात्कार नहीं कर पाया। परिणामतः वह मिथ्या मूर्तियों को पूज रहा है, दोषपूर्ण लक्ष्य निश्चित कर रहा है और नये ‘भस्मासुरों’ को बढ़ा रहा है। प्राविधिक विवेक के बिना उसका प्रौद्योगिक ज्ञान अन्ततोगत्वा मानव जाति को सम्पूर्ण विनाश की ओर ले जा सकता है। भारतीय संस्कृति की विशेषता जीवन और विश्व के प्रति एकात्म दृष्टि है। यहाँ मानव जीवन का लक्ष्य ‘दर्शन’ के प्रकाश में निश्चित किया जाता है।
इस पुस्तक के पृष्ठों में पं. दीनदयालय जी ने एकात्म मानववाद का भारतीय दर्शन प्रस्तुत किया है तथा श्री गुरु जी ने पूर्ण मानव के भारतीय आदर्श का विवेचन किया है जबकि श्री ठेंगड़ी जी ने दीनदयाल जी द्वारा प्रस्तुत एकात्म मानववाद के प्रत्यय का पूरक विश्लेषण किया है।
पाश्चात्य ‘वादों’ की असंगति का आज बौद्धिकों को अधिकाधिक अनुभव हो रहा है। इस पृष्ठ भूमि में इस पुस्तक का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है
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